पास ‘दोस्ती की दौलत’ हो तो डर नहीं लगता
ये वो कमाई है .... जिसपर ‘कर’ नहीं लगता
छुपाया था यूं तो बड़े जतन से .... ज़माने से
पर उस ‘राज़’ से कोई .. बेखबर नहीं लगता
ये कवायद .. ‘एहतियात-ओ-सब्र’ मांगती है
इश्क में कोई .. ‘जोर-ओ-ज़बर’ नहीं लगता
सारे पुर्जे जिस्म के ....... जवाब दे रहे है
कभी दिल .. तो कभी जिगर नहीं लगता
वो कहते है ‘अमित’ का कोई .. सानी नहीं है
ऐसा भी नहीं कोई उससे बेहतर नहीं लगता
समझौता उसने भी कर लिया हालात से शायद
अब 'अमित' में भी ...... वो ‘तेवर’ नहीं लगता
--अमित हर्ष
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Saturday, March 2, 2013
ये वो कमाई है .... जिसपर ‘कर’ नहीं लगता
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