कितना इख्तियार था उसको अपनी इस चाहत पे "अजनबी"
इस लिए जब चाहा याद किया, जब चाहा भुला दिया
--अजनबी एक गुमनाम शायर
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Thursday, November 15, 2012
कितना इख्तियार था उसको अपनी इस चाहत पे "अजनबी"
आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना
राहों पे नज़र रखना, होंटों पे दुआ रखना
आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना
इस रात की शम्मा को इस तरह जलाए रखना
अपनी भी खबर रखना, उसका भी पता रखना
तन्हाई के मौसम में सायों की हुकूमत है
यादों के उजालों को सीने से लगा रखना
रातों को भटकने की देता है सज़ा मुझको
दुश्वार है पहलू में दिल तेरे बिना रखना
लोगों की निगाहों को पढ़ लेने की आदत है
हालात की तहरीरें चेहरे से बचा रखना
फूलों में रहे अगर दिल तो याद दिला देना
तन्हाई के लम्हों का हर ज़ख्म हरा रखना
एक बूँद भी अश्कों की दामन न भिगो पाए
गम उसकी अमानत है, पलकों पे सजा रखना
इस तरह कही उससे बरताव रहे अपना
वो भी न बुरा माने, दिल का भी कहा रखना
--कतील शिफाई
Friday, November 9, 2012
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद
फिर उसी रहगुज़र पर शायद
हम कभी मिल सकेँ, मगर शायद
जान पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त गौर कर, शायद
मुन्तज़िर जिन के हम रहे उन को
मिल गये और हम-सफ़र शायद
जो भी बिछ्डे हैँ कब मिले हैँ फ़राज़
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद
अहमद फ़राज़
Wednesday, November 7, 2012
saari raat sitaaro se uska zikr hota hai....
सारी सारी रात सितारों से उसका ज़िक्र होता है
और उसको ये गिला है के हम याद नहीं करते
--अज्ञात
दिल लगी में वक़्त-ए -तन्हाई ऐसा भी आता है
दिल लगी में वक़्त-ए -तन्हाई ऐसा भी आता है
कि रात चली जाती है मगर अँधेरे नहीं जाते
--अज्ञात
Sunday, November 4, 2012
joojh rahe the pehle hi nafrato se...
joojh rahe the pehle hi nafrato se...
aur idhar mohabbat ne bhi morcha khol dia....
amit harsh