लज्ज़त-ए-ज़िन्दगी कम नहीं करते
हर बात पे ऐ दोस्त ! ग़म नहीं करते
दिक्कतें खटखटाती है दरवाजा रह रह के
पर उनसे मुलाक़ात अब हम नहीं करते
मायूस हो जायेंगी मंजिलें न पा कर तुझे
बढ़ाकर आगे यूं पीछे क़दम नहीं करते
नेमत है खुदा की और इबादत भी है ये
मेरी जान ! इश्क में शरम नहीं करते
न ज़िक्र तकलीफ का, न शिकवा कोई
सितम पे उनके यूं सितम नहीं करते
मसला ही हुआ हल, न खातमा किरदार का
बीच कहानी किस्सा यूं खतम नहीं करते
बेपनाह मोहब्बतों से नवाज़ा गैरों ने यूं तो
फ़क़त अहबाब ‘अमित’ पे करम नहीं करते
* * अहबाब ahbaab = मित्रगण, दोस्त friends (हबीब का बहुवचन)
-- अमित हर्ष
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