Sunday, July 20, 2014

यही हालात इब्तदा से रहे

यही हालात इब्तदा से रहे
लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे

बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे

इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे

बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी
तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे

उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे

ज़िन्दगी की शराब माँगते हो
हमको देखो कि पी के प्यासे रहे

--जावेद अख्तर

Saturday, July 12, 2014

किसी का ऐतबार क्या करते

किसी का ऐतबार क्या करते
जो भी देखा ख़्वाब में देखा

Tuesday, July 8, 2014

वो शक्स किसी और की किस्मत में लिखा था

दीवान-ए-गज़ल जिसकी मोहब्बत में लिखा था
वो शक्स किसी और की किस्मत में लिखा था

वो शेर कभी उसकी नज़र से नहीं गुज़रा
जो डूब के जज़्बात की शिद्दत में लिखा था

दुनिया में तो ऐसे कोई आसार नही थे
शायद तेरा मिलना भी क़यामत में लिखा था

--अज्ञात

Monday, July 7, 2014

हिज्र लाजिम है तो वस्ल का वादा कैसा

हिज्र लाज़िम है तो वस्ल का वादा कैसा

इश्क तो इश्क है, कम कैसा ज्यादा कैसा