कुज उंज वी राहवां औखियाँ सन
कुज गल्ल विच गम दा तौख वी सी
कुज शहर दे लोक वी ज़ालिम सन
कुज सानू मरण दा शौक वी सी
अज़ीम मुनीर नियाज़ी
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कुज उंज वी राहवां औखियाँ सन
कुज गल्ल विच गम दा तौख वी सी
कुज शहर दे लोक वी ज़ालिम सन
कुज सानू मरण दा शौक वी सी
अज़ीम मुनीर नियाज़ी
रिश्तों का धागा इतना कच्चा नहीं होता
किसी का दिल तोडना अच्छा नहीं होता
प्यार तो दिल की आवाज़ है
कौन कहता है एक तरफ़ा प्यार सच्चा नहीं होता
--अज्ञात
ये आइने तुझे तेरी खबर क्या देंगे
आ मेरी आँखों में देख ले तू कितना हसीन है
--अज्ञात
खलल, ख्यालात .. हालात से निकलती है
यूं तो हर ग़ज़ल तेरी बात से निकलती है
वही तो है जो ढल जाती है अश’आरों में
आवाज़ जो दिल-ओ-जज़्बात से निकलती है
बड़ी दिलकश है वो जो ख़्वाबों की कहानियां
वो दास्ताँ इन्हीं शाम-ओ-रात से निकलती है
बन के दरिया समन्दर में तब्दील हो गई
नदी वो सकरे जल-प्रपात से निकलती हैं
आप तलाश रहे है .. अंजाम के मुहाने पे
वजह हर वजह की शुरुआत से निकलती है
सुनो, समझो, संभालो रखो मर्ज़ी तुम्हारी
बात अब ‘अमित’ के हाथ से निकलती है
--अमित हर्ष
कोई हल है न कोई जवाब है
ये सवाल कैसा सवाल है
जिसे भूल जाने का हुक्म है
उसे भूल जाना मुहाल है
--अज्ञात
कितना आसान था तेरे हिजर में मरना जानां
फिर भी इक उमर लगी जान से जाते जाते
--अज्ञात
(From Noorjahan gazal.. itne marassim the ke aate jaate)