Sunday, April 14, 2013

नया एक रब्त क्यों करें हम

नया एक रब्त क्यों करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम

खामोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम

ये काफी है के हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यों करें हम

वफ़ा, इखलास, कुर्बानी, मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम

हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम

नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो फिर दुनिया की परवाह क्यों करें हम

--अज्ञात

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