तुम कई बार मिल चुके होते
तुम जो मिलते दुआओं से
--अज्ञात
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तेरे दोस्तों में तेरा भ्रम रहे,
यही सोच कर मैं चुप रहा
जो निगाह में था वो छुपा लिया
जो दिल में था वो कहा नहीं
--अज्ञात
नया एक रब्त क्यों करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम
खामोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम
ये काफी है के हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यों करें हम
वफ़ा, इखलास, कुर्बानी, मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम
हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो फिर दुनिया की परवाह क्यों करें हम
--अज्ञात
जो हो एक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता
हमेशा एक ही से प्यार हो ऐसा नहीं होता
हर एक कश्ती का अपना तजुर्बा होता है दुनिया में
सफर में रोज़ ही मझधार हो ऐसा नहीं होता
कहानी में तो किरदारों को जो चाहिए बना दीजिए
हकीक़त में कहानीकार हो ऐसा नहीं होता
कहीं तो कोई होगा जिसको अपनी भी ज़रूरत हो
हर एक बाज़ी में दिल की हार हो ऐसा नहीं होता
सिखा देती हैं चलना ठोकरें भी राहगीरों को
कोई रास्ता सदा दुश्वार हो ऐसा नहीं होता
--अज्ञात