तलुवे तले जीभ उतारकर रख दी
बोतल शराब की निकालकर रख दी
मुहब्बत का पन्ना पन्ना याद किया
किताब आंसू से जलाकर रख दी
तुम्हे तो ये भी नहीं पता है , सोना
हमने ज़िन्दगी कहाँ गुजारकर रख दी
ज़हर अभी उतरा भी नहीं था
तेरी याद फिर सजाकर रख दी
तूने भी हिस्से में कुछ नहीं छोड़ा
हमने भी विरासत गँवाकर रख दी
मानस भारद्वाज
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