वही ज़बान, वही बातें मगर है कितना फरक
तेरे नाम से पहले और तेरे नाम के बाद
--अज्ञात
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वही ज़बान, वही बातें मगर है कितना फरक
तेरे नाम से पहले और तेरे नाम के बाद
--अज्ञात
Kahan dhoondte firte ho ishq ko tum ai bekhabar........
ye khud hi dhoond leta hai jise isko barbaad karna hota hai...
Unknown.....
चुभ गया आँख में किसी कांटे की तरह
जब भी किसी ख्वाब को पलकों पे सजाना चाहा
--अज्ञात
बदलते शहरों में मुकाम लिखेगा
बेटा बड़ा हो कर कोहराम लिखेगा
यकीन तुझे होगा जब आशिक तेरा
किसी और की हथेली पे तेरा नाम लिखेगा
--मानस भारद्वाज
न दिल का रोग था, न यादें थी, और न ही ये हिजर
तेरे प्यार से पहले की नींदें भी कमाल की थी
-अज्ञात
न गरज़ किसी से, न वास्ता
मुझे काम अपने ही काम से
तेरे ज़िक्र से, तेरी फ़िक्र से
तेरी याद से, तेरे नाम से
--अज्ञात
चलने को रास्ता नहीं होता
तब भी कुछ बुरा नहीं होता
सिर्फ तुमको भूल नहीं पाए
करने से वर्ना क्या नहीं होता
अपना गम पुराना नहीं होता
भले ही कभी नया नहीं होता
मेरी शायरी सब झूठी है
किस्सा सच्चा बयां नहीं होता
जो तूने हाँ कर दी होती
मेरा तब भी भला नहीं होता
सोचता हूँ रस्सी कहाँ होती
अगर मेरा गला नहीं होता
यार उनका क्या होता है ?
जिनका कभी बुरा नहीं होता
सुना है दिल ऐसा होता है
जिसमे कुछ खुरदुरा नहीं होता
दुनिया शायद और बुरी होती
जो तेरा गम जुडा नहीं होता
पर फिर मेरा क्या होता
अगर रास्ता मुडा नहीं होता
अब मुझे अच्छा नहीं लगता
जब मेरे साथ बुरा नहीं होता
तुझमे मुझमे फर्क नहीं होता
जो बाप का पैसा नहीं होता
होने को तो सब हो सकता था
पर तब क्या ऐसा नहीं होता ?
सब तेरे जैसे होते हैं
पर कोई तेरे जैसा नहीं होता
"मानस" ये तो हद है तेरी
चाँद कहने से तेरा नहीं होता
मानस भारद्वाज
जब प्यार नही है,तो भुला क्यो नही देते..
खत किस लिए रखे है, जला क्यो नही देते..
क्यो तुमने लिखा ,अपनी हथेली पे मेरा नाम..
मैं हर्फ़ ग़लत हू, तो मिटा क्यो नही देते..
किस वास्ते तडपते हो, मासूम मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर , पिला क्यो नही देते..
गर तुमको मुहब्बत है तो, आ जाओ मेरे घर
दीवार ज़माने की, गिरा क्यो नही देते..
मेरी मुहब्बत पे अगर, शक है तुम्हे तो
ए मेरे हमराज़, निगाहों से गिरा क्यो नही देते..
--अज्ञात