बहुत थे हमारे भी कभी इस दुनिया में अपने
काम पड़ा दो चार से और हम अकेले हो गए
--अज्ञात
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बहुत थे हमारे भी कभी इस दुनिया में अपने
काम पड़ा दो चार से और हम अकेले हो गए
--अज्ञात
तोड़ कर दिल मेरा तुम हाल पूछते हो
बड़े नादाँ हो हुआ क्या बवाल पूछते हो
मनमोहन बाराकोटी
वही रंजिशें रहीं वही हसरतें रहीं
न ही दर्द-ए-दिल में कमी हुई
बड़ी अजीब सी है ज़िन्दगी हमारी
न गुज़र सकी; न ख़त्म हुई
--अज्ञात
ज़ब्त कहता है कि ख़ामोशी में बसर हो जाए
दर्द की ज़िद है कि दुनिया को खबर हो जाए
--अज्ञात