ऐसा नहीं के हम को मोहब्बत नहीं मिली
हाँ जैसे चाहते थे वो कुरबत नहीं मिली
मिलने को ज़िंदगी में कईं हमसफ़र मिले
लेकिन तबीयत से तबीयत नहीं मिली
चेहरों के हर हुजूम में हम ढूँढ़ते रहे
सूरत नहीं मिली, कहीं सीरत नहीं मिली
वो यक-ब-यक मिला तो बहुत देर तक हमें
अलफ़ाज़ ढूँढने की भी मोहलत नहीं मिली
उसको गिला रहा के तवज्जो न दी उसे
लेकिन हमें खुद अपनी रफाक़त नहीं मिली
हर शक्स ज़िंदगी में बहुत देर से मिला
कोई भी चीज़ हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं मिली
तुम ने तो कह दिया के मोहब्बत नहीं मिली
मुझको तो ये भी कहने की मोहलत नहीं मिली
--अज्ञात
अलफ़ाज़ -दर-अलफ़ाज़ खूबसूरत गज़ल!
ReplyDeleteशुक्रिया !