मुहब्बत की वापिस निशानी करें।
शुरू फिर जो चाहें कहानी करें।।
है घाटे का सौदा मुहब्बत सदा।
हिसाब अब लिखें या जुबानी करें।।
चलो नागफनियाँ उखाड़ें सभी।
वहाँ फिर खड़ी रात-रानी करें।।
है रुत पर भला बस किसी का चला।
चलो बातें ही हम सुहानी करें।।
खरीदे बुढापे को कोई नहीं।
सभी तो पसन्द अब जवानी करें।।
बहुत जी लिये और मर भी लिये।
बता क्या तेरा जिन्दगानी करें।।
रवायत नहीं ‘श्याम’ जब ये भली।
तो फिर बातें क्यों हम पुरानी करें।
--श्याम सखा
Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2011/05/gazal-shyam-skha-shyam.html
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