कभी-कभी दुआओं का जवाब आता है
और कुछ इस तरह कि बेहिसाब आता है
ढूँढते रहते हैं रात-दिन जो फुरसत के रात-दिन
हो जाते हैं पस्त जब पर्चा रंग-ए-गुलाब आता है
(पर्चा रंग-ए-गुलाब = pink slip, नौकरी खत्म का आदेश )
यूँ तो तेल निकालो तो तेल निकलता नहीं है
और अब निकला है तो ऐसे जैसे सैलाब आता है
(सैलाब = बाढ़, flood)
चश्मा बदल-बदल कर कई बार देखा
हर बार नज़रों से दूर नज़र सराब आता है
(सराब = मरीचिका, mirage)
पराए भी अपनों की तरह पेश आते हैं 'राहुल'
वक़्त कभी-कभी ऐसा भी खराब आता है
--राहुल उपाध्याय
सिएटल | 425-898-9325
4 जून 2010
Source : http://mere--words.blogspot.com/2010/06/blog-post_04.html
This is really nice!!
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