Saturday, November 7, 2009

दीवाने की कब्र खुदी तो

लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से टकराने निकले

बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले

याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले

पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले

आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले

दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने निकले

सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने निकले

'श्या्म’ उमंगें लेकर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले

--श्याम सखा श्याम


Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2009/11/blog-post.html

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